भारी जल (D2O) science ki jankari में आज हम इसी पर चर्चा करेंगे।।

भारी जल (HEAVY WATER) D2O क्या है? भारी जल की परिभाषा?

इसका अणु सूत्र: D2O और मोलर द्रव्यमान: 20.0276 g/mol इसका क्वथनांक: 101.4 °C और इसका गलनांक: 3.8 °C तथा घनत्व: 1.11 g/cm³ होता है।

ड्यूटीरियम  (भारी हाइड्रोजन) के ऑक्साइड D2O को भारी जल कहते हैं। भारी जल की खोज 1932 में यूरे और वाशबर्न (H.C. Urey and E.W. Washburn) ने की थी। इन वैज्ञानिकों ने ज्ञांत किया कि साधारण जल के लगभग 6000 भागों में 1 भाग भारी जल का होता है, और जल मुक्त होती है। यूरे और वाशबर्न तथा अन्य वैज्ञानिकों ने क्षारीय जल का कई क्रमों में वैद्युत अपघटान कराके शुद्ध भारी जल प्राप्त किया था और उसके गुणों की जाँच की थी। 1934 में यूरे को इसके लिए नोबेल पुरस्कार मिला था। भारी जल का अणू भार 20 होता है


भारी जल कैसे बनाया जाता है उसकी  विधियाँ 

1. साधारण जल के विद्युत्-अपघटन द्वारा :

साधारण जल के 6000 भागों में लगभग 1 भाग भारी जल का होता है। जल का वैद्युत्-अपघटन करने पर ड्यूटीरियम की तुलना में हाइड्रोजन 6 गुणा अधिक शीघ्रता से मुक्त होती है, अतः बहुक्रमों (multi stages) में क्षारीय जल का विद्युत्-अपघटन कराकर उससे भारी जल प्राप्त किया जा सकता है। जल के विद्युत्-अपघटन विद्युत्-अपघटन द्वारा भारी जल प्राप्त करने की कुछ विधियाँ निम्नलिखित हैं। इन विधियों में टेलर, आइरिंग और फ्रॉस्ट (Taylor, Eyring and Frost) विधि अधिक आधुनिक और मुख्य हैं।

(A) लुई और मैक्डोनाल्ड विधि (Lewis and MacDonald Process)

लुई और मैक्डोनाल्ड ने 20 लीटर N/2  NaOH विलयन का बहुक्रमों में वैद्युत्-अपघटन कराके लगभग 0.5 mL शुद्ध भारी जल प्राप्त किया। विलयन का विद्युत्-अपघटन निकैल इलेक्ट्रोड लगे हुए विद्युत्-अपघटनी सेलों में साधारण ताप पर 6 क्रमों में किया गया। प्रत्येक क्रम में विलयन का विद्युत्-अपघटन उसके मूल आयतन का 1/6 शेष बचने तक कराया गया। विद्युत्-अपघटन के प्रत्येक क्रम के प्रारम्भ में विलयन की सान्द्रता 0.5N NaOH रखी गयी, ऐसा करने के लिए पिछले क्रम में शेष बचे हुए विलयन को कार्बन डाइऑक्साइड द्वारा उदासीन करके उसे आसक्ति किया गया और प्राप्त हुए आसुत जल में NaOH उसकी सान्द्रता 0.5N NaOH कर दी गयी। विद्युत्-अपघटन के छठे क्रम के उपरान्त लगभग 0.5 mL शुद्ध भारी जल प्राप्त हुआ। भारी जल का औद्योगिक उत्पादन करने में अब इस विधि का उपयोग नहीं किया जाता है।

(B) यूरे, ब्राउन और डेगेट विधि

इस विधि में 3% NaOH विलयन का कई विद्युत अपघटनी सेलों में, पांच क्रमो में वैद्युत अपघटन कराया गया था। विद्युत अपघटानी सेल 45 सेमी ऊंचाई और 10 सेमी व्यास का स्टील का बना पात्र था। पात्र को कैथोड और एक छिद्रयुक्त निकैल की प्लेट को सेल का एनोड बनाया गया था । प्रथम क्रम में उक्त प्रकार के 30 सेल लिए गए थे और प्रत्येक सेल में 3 लीटर 3% NaOH विलयन भरकर विलयन का विद्युत्-अपघटन उसके मूल आयतन का 1/6 शेष बचने तक कराया गया  था। प्राप्त अवशेष (residue) में लगभग 2.5% भारी जल था। इस अवशेष का द्वितीय क्रम में, 6 सेलों में, पुनः विद्युत्-अपघटन कराकर लगभग 12% भारी जल युक्त अवशेष प्राप्त किया गया। तृतीय क्रम में इस अवशेष का पुनः विद्युत्-अपघटन कराकर लगभग 60% भारी जल युक्त अवशेष प्राप्त किया गया, जिसका, चतुर्थ क्रम में पुनः विद्युत्-अपघटन कराकर लगभग 100% भारी जल प्राप्त किया गया। चतुर्थ क्रम के उपरान्त बचे हुए अवशेष को आसवित किया गया। प्राप्त हुए आसुत का फॉस्फोरस पेन्टॉक्साइड की उपस्थिति में पाँचवें क्रम में पुनः विद्युत्-अपघटन कराने पर ड्यूटीरियम गैस मुक्त हुई, जिसे ऑक्सीजन में जलाकर 100% शुद्ध भारी जल प्राप्त किया गया था।

(3) टेलर, आइरिंग और फ्रॉस्ट विधि (आधुनिक विधि)(H.S. Taylor, H. Eyring and A.A. Frost Method, 1993) 

इस विधि में 0-5N NaOH विलयन का विद्युत्-अपघटनी सेलों की बैटरी में निकल इलेक्ट्रोडो के मध्य सात चरणों (seven stages) में वैद्युत्-अपघटन (electrolysis) किया जाता है। 

          प्रथम चरण में, 0-5N NaOH विलयन का विद्युत्-अपघटन करने पर जब विलयन का आयतन घटकर प्रारम्भिक आयतन का लगभग 1/6 शेष रह जाता है तब शेष बचे हुए क्षारीय विलयन को CO2, गैस द्वारा उदासीन करके उसे आसवित कर लेते हैं। प्राप्त हुए आसुत जल में 0-5N NaOH विलयन बनाकर उसका मूल आयतन का 1/6 शेष बचने तक, पुनः विद्युत् - अपघटन दोहराया जाता है। सातवें चरण के अन्त में शुद्ध भारी जल प्राप्त होता है। प्रत्येक अगले चरण में यह प्रक्रम दोहराया जाता  है। और सातवें चरण के अंत मे सुद्ध भारी जल प्राप्त होता है । विद्युत्-अपघटन के तीसरे चरण के उपरान्त हाइड्रोजन के साथ ड्यूटीरियम गैस भी पर्याप्त मात्रा में  मुक्त होने लगती है। मुक्त गैसों को जलाकर जल में परिवर्तित कर देते हैं और प्राप्त हुए जल को विद्युत्-अपघटन के लिए पिछले चरणों के विद्युत्-अपघटनी सेलों में डाल देते हैं। टेलर, आइरिंग और फ्रॉस्ट ने 2310 लीटर, 0.5N NaOH विलयन का सात चरणों मे विद्युत अपघटन करके 83 mL, 99% शुद्ध भारी जल प्राप्त किया।भारी जल का औद्योगिक उत्पादन आजकल इस विधि द्वारा होता है 

4. प्रभाजी आसवन द्वारा :

भारी जल (D2O) का क्वथनांक 101.4°C और साधारण जल का क्वथनांक 100°C है, अत प्रभाजी आसवन द्वारा D2O को जल से पृथक् किया जा सकता है। आसवन प्रायः 40 फिट लम्बे प्रभाजी स्तम्भों (fractionating columns) में कराया जाता है। आसवन कराने पर पहले जल का हल्का अंश आसवित होता है और अवशेष में भारी जल की प्रतिशत मात्रा बढ़ जाती है।

 भारी जल का उपयोग

 1 न्युट्रान मंदक के रूप में 

2 ड्यूटीरियम तथा ड्यूटीरियम के यौगिक बनाने में 

3 ट्रेसर के रूप में 

4 आयनिक और आयनिक हैड्रोजेन में विभेद करने में

 

भारी जल के शारीरिक और जैविक क्रियात्मक प्रभाव 

(1) सान्द्र भारी जल शरीर के लिए हानिकारक (toxic) है। भारी जल साधारण जल की तुलनामें मन्द वेग से अभिक्रिया करता है, जिससे शरीर में होने वाली सामान्य अभिक्रियाएँ असन्तुलित हो जाती हैं।

(2) भारी जल पौधों के विकास (growth) को रोकता है।

 (3) भारी जल में बीजों का अंकुरण (germination) रुक जाता है। 

(4) भारी जल में टैडपोल तथा कई अन्य छोटे जीव मर जाते हैं।

 भारत मे भारी जल का उत्पादन 

भारत मे इसका उत्पादन  भाखड़ा नांगल, कोटा और बड़ौदा में है



3 Comments

  1. बहुत बढ़िया जानकारी दी आपने।

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    1. अगर आपको ये जानकारी अच्छी लगी है तो अपने दोस्तों के साथ शेयर करें

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